कल पुराने आर्काइव पर नज़रें बरसाईं तो याद आया कि ज़माना कैसे आगे बढ़ता जाता है और आप आह भी नहीं भर पाते।
देखिए अब कल की ही बात लगती है जब वो दोनों मेरे रूबरू होती थीं और मुझ नासमझ को समझ ही न आता था कि दो बरस बाद भी वो मेरी ही होंगीं मगर आभास की दुनिया के उस पार। दो बरस बाद भी हम बात करेंगे मगर हमारे बीच की बेतकल्लुफी इक चुप, काली, अभागन मौत मर चुकी होगी।
मैं डर गई कल जब उसने फ़ोन पर एक बहुत सर्द, दर्दनाक कहकहा लगाया और बोली -
“शिखा, इज़ इट द सेम एनीमोर? अब वो वाली बात कहाँ रही है जब हम साथ हुआ करते थे और एक ही शहर का पानी पीते थे। ज़िंदगी हौले - हौले तबाह होती जाती है और मैं फिर भी जीती जाती हूँ… काश़ तुम होतीं।”
और उसका गला रूँध जाता है पर मैं कुछ नहीं कर पाती। उसका बड़े - बड़े डिम्पल वाला चेहरा मेरी आँखों के सामने तैरता जाता है और मैं प्रार्थना करती जाती हूँ , काश़ मैं और वो, हम दोनों फिर मिलें और आइरिश कॉफ़ी के साथ कहकहों और ऊटपटाँग बातों में सराबोर हो जाए और उसका खोया हुआ बचपना वापस लौट आए।
मगर मुझे अंदेशा है कि अब शायद ही ऐसा कुछ होगा क्यूंकि आखिरकार,
जो बीत गई… वो बात गई
और शायद वो अब मुझसे बीत चुकी है।
वक़्त बदलता है, इंसान बदलता है, और उसके साथ उसकी पूरी दुनिया भी।
बस एक चीज़ है जो नहीं बदलती — वो हैं यादें।
कुछ यादें, जैसे सूरज की किरणें — जो धुंधले बादलों के पीछे से झाँकने की कोशिश करती हैं,
और कुछ यादें हमारे आसपास के खालीपन से मिलकर हमसे ऐसे लिपट जाती हैं — कि फिर कभी अलग नहीं होतीं।
Wow! Beautiful! Yes, life will go on and n and you cannot pause a single moment. Just live it and take it all in. Lovely. 💙